हॉट वेब सीरीज के कंपटीशन में हॉटस्टार, सुपर्ण व मिलन ने लगाया डिज्नी के नाम को बट्टा

डिज्नी प्लस हॉटस्टार की क्रिएटिव टीम की बौद्धिक लाचारी एक बार फिर वेब सीरीज ‘सुल्तान ऑफ दिल्ली’ में झलकी है। सीरीज देखकर समझ आता है कि इसे बनाने वालों ने तो कभी दिल्ली की पुरानी तस्वीरें देखी हैं, न दिल्ली के आसपास की आबोहवा और मिट्टी की बनावट समझी है, न ही यहां की बोली समझी है। ठीक से हिंदी तक न लिख पाने वाला कला निर्देशन विभाग आजादी के समय का और फिर उसके 15 साल बाद का हिंदुस्तान क्या ही समझ पाएगा…!! और, उसे समझने की जरूरत भी क्या है जब क्वालिटी चेक नाम की चिड़िया ही ओटीटी के घोंसले से न जाने कब की उड़ चुकी है।
दिल्ली की मनोहर कहानियां
किताबों पर फिल्में और वेब सीरीज बनाने का इन दिनों फैशन है और इसमें कोई पीछे रहना नहीं चाहता। लेकिन, किताब कौन सी मुफीद रहेगी, इसका सिरा मुंबई के फिल्मकार हुसैन जैदी की किताबों पर बनी सीरीज से तय कर रहे हैं। ‘डोंगरी टू मुंबई’ टाइप की किताब है ‘सुल्तान ऑफ दिल्ली’। बस यहां कुछ भी असल जिंदगी जैसा नहीं है। बंटवारे के वक्त लाहौर में अपना सब कुछ खो चुका एक बालक अपने पिता के साथ दिल्ली की शरणार्थी बस्ती पहुंचता है। गरीबों का मसीहा बनने के लिए फिल्मी टाइप का अपराध करता है। बड़ा होकर फिर फिल्मी टाइप का जुआ खेलता है। दोस्ती भी करता है तो बहुत ही फिल्मी टाइप से। ये बार बार फिल्मी लिखने का मतलब ये है कि इस सीरीज की पटकथा लिखने वालों ने या तो सलीम जावेद का सिनेमा बहुत ज्यादा देख रखा है या फिर इनका निजी जिंदगी के अपराधियों से वास्ता पड़ा ही नहीं। ये कमी अपराध कथाओं के शोध से पूरी हो सकती थी लेकिन जब ओटीटी वालों को अपने ब्रांड की पड़ी नहीं है तो सीरीज बनाने वाले तो वैसे भी इन दिनों बस प्रोजेक्ट पास करा रहे हैं। दक्षिणा चढ़ा रहे हैं और माल छाप कर डिलीवर कर दे रहे हैं।
सेमी पॉर्न अपराध कथा
वेब सीरीज ‘सुल्तान ऑफ दिल्ली’ देखकर लगता है कि इसके रचयिता मिलन लूथरिया ने ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ में दिल्ली की कोई ‘डर्टी पिक्चर’ घोल दी है। कभी स्टार के शॉपिंग चैनल पर बोली लगाकर माल बेचने वाली अनुप्रिया गोयनका की कद-काठी, रूप-लावण्य पर लोग मोहित रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने सांवली स्मिता पाटिल बनने की बजाय सांवली सिल्क स्मिता का रूप धरा है और फुल ऑन ‘डर्टी पिक्चर’ दिखाई है। कल ही कहीं पढ़ रहा था सुहासिनी मणिरत्नम का बयान कि कैसे ओटीटी वाले अपनी ग्राहक संख्या बढ़ाने के लिए सेमी पॉर्न सामग्री धड़ल्ले से परोस रहे हैं और तमाम हीरोइनें इसके लिए खुद ही 24 घंटे ‘रेडी ऑन’ मूड में रहती हैं। ‘सुल्तान ऑफ दिल्ली’ भी इसी कैटेगरी की सीरीज है। कहानी के नाम पर ज्यादा कुछ है नहीं। बस सेक्स है, अनुप्रिया हैं और मौनी रॉय हैं।
नकली संवादों की नकली सीरीज
मिलन लूथरिया से ज्यादा इस वेब सीरीज के अपराधी सुपर्ण एस वर्मा हैं। पटकथा उन्हीं की लिखी है और निर्देशन में भी उनकी हिस्सेदारी है। दिल्ली के पास ऊसर तो 60 के दशक में हो सकता है लेकिन उधर से जाकर भला कोई हथियारों की तस्करी करेगा ही क्यों? दूसरे मालिक को ‘सेठ’ बोलने की परंपरा मुंबई और गुजरात में है, दिल्ली और यूपी में नहीं। इटावा तक जा पहुंची इस कहानी के सारे सुर ढीले हैं। विनय पाठक को छोड़ दें तो बाकी कलाकार के इसके इतने रंगीले हैं कि विजय कृष्ण आचार्य की फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ याद आने लगती है। वह भी इतनी ही नकली फिल्म थी।
कंपटीशन गहना वशिष्ठ की सीरीज से!
वेब सीरीज ‘सुल्तान ऑफ दिल्ली’ में ताहिर राज भसीन से बढ़िया अदाकारी अनुज शर्मा ने की है। ताहिर को जैसे जैसे काम मिलता जा रहा है, उनके अभिनय की सीमाएं भी दर्शकों को पता चलती जा रही हैं। उनकी कद काठी ऐसी नहीं है कि वह दो अंगुलियों की पिस्तौल बनाएं और दिल्ली में बरसों से धंधा करते आ रहे लोग बस गोली चलने का इंतजार करते रह जाएं। अनुप्रिया गोयनका से शंकरी देवी जैसा कुछ किसी न किसी वेब सीरीज में करने के आसार उनके ‘असुर 2’ जैसी सीरीज में सिर्फ सजावटी सामान बन जाने के बाद से ही दिखने लगे थे, लेकिन ये कारनामा गहना वशिष्ठ जैसा होगा, इसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की हो। कला निर्देशन, वेशभूषा, संवाद, निर्देशन के साथ साथ ये वेब सीरीज संगीत के मामले में भी पैदल है। ऐसा लगता है जैसे ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ का बचा हुआ स्टॉक म्यूजिक यहां इस्तेमाल कर लिया गया है।